⚛योगेश्वर श्रीकृष्ण 🧘‍♂️ और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस


योगेन चित्तस्य पदेन वाचां, 
मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।
योऽपाकरोत् तं प्रवरं मुनीनां, 
पतंजलि प्रांजलिरानतोऽस्मि।।

भारतीय इतिहास में ऐसा कोई समय नहीं रहा, जब योग-ज्ञान का बोलबाला नहीं था। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि यह अविनाशी योग का ज्ञान मैंने सृष्टि के प्रारंभ में सूर्य को दिया, सूर्य ने मनु को एवं मनु ने इक्ष्वाकु को दिया। अतः सृष्टि के प्रारंभ से योग का ज्ञान निरंतर बहता चला आ रहा है। योग का अर्थ केवल आसन करने भर से नहीं, बल्कि अपने शुद्ध स्वरूप को जानने और उसमें टिक जाने से है। इसकी अनेक विधियां, उपाय, साधनाएं समय पर ऋषियों द्वारा वर्णित हुई और योग का ज्ञान अलग-अलग शास्त्रों में बिखर गया।


योग के इस बिखरे ज्ञान को लगभग 2200 साल पहले महर्षि पतंजलि ने इकट्ठा कर एक स्थान पर लिपिबद्ध किया। इस ग्रंथ का नाम ‘योगसूत्र’ है। योगसूत्र में योग के हर पहलू का ज्ञान सूत्रों में दिया है। इस ग्रंथ में 195 सूत्र हैं और चार अध्याय हैं- समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद! महर्षि पतंजलि द्वारा लिखे योगसूत्रों की अब हम अपने नए कॉलम ‘योगसूत्र’ नाम से सूत्रों की व्याख्या प्रारंभ कर रहे हैं, जिससे पतंजलि के योग ज्ञान को उसके वास्तव रूप में समझने में आसानी हो सके।

आधुनिक युग में योग का महत्व बढ़ गया है। इसके बढ़ने का कारण व्यस्तता और मन की व्यग्रता है। आधुनिक मनुष्य को आज योग की ज्यादा आवश्यकता है, जबकि मन और शरीर अत्यधिक तनाव, वायु प्रदूषण तथा भागमभाग के जीवन से रोगग्रस्त हो चला है।

आधुनिक व्यथित चित्त या मन अपने केंद्र से भटक गया है। उसके अंतर्मुखी और बहिर्मुखी होने में संतुलन नहीं रहा। अधिकतर अति-बहिर्मुख जीवन जीने में ही आनंद लेते हैं जिसका परिणाम संबंधों में तनाव और अव्यवस्थित जीवनचर्या के रूप में सामने आया है।

अंतरिक्ष में योग : योग का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि मनुष्य जाति को अब और आगे प्रगति करना है तो योग सीखना ही होगा। अंतरिक्ष में जाना है, नए ग्रहों की खोज करना है। शरीर और मन को स्वस्थ और संतुलित रखते हुए अंतरिक्ष में लम्बा समय बिताना है तो विज्ञान को योग की महत्ता और महत्व को समझना होगा।

भविष्य का धर्म : दरअसल योग भविष्य का धर्म और विज्ञान है। भविष्य में योग का महत्व बढ़ेगा। यौगिक क्रियाओं से वह सब कुछ बदला जा सकता है जो हमें प्रकृति ने दिया है और वह सब कुछ पाया जा सकता है जो हमें प्रकृति ने नहीं दिया है।

अंतत: : मानव अपने जीवन की श्रेष्ठता के चरम पर अब योग के ही माध्यम से आगे बढ़ सकता है, इसलिए योग के महत्व को समझना होगा। योग व्यायाम नहीं, योग है विज्ञान का चौथा आयाम और उससे भी आगे।

Comments